श्रीनगर , दिसंबर 09 -- जम्मू- कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की एक अदालत ने पुलिस कांस्टेबल को अवैध रूप से हिरासत में लेने और यातनायें देने के आरोपी पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) समेत आठ पुलिसकर्मियों की जमानत अर्जियां खारिज कर दीं हैं।

यह आदेश उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मामले में आरोपपत्र दाखिल किए जाने के लगभग दो महीने बाद आया है।

कुपवाड़ा के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश मंजीत सिंह मनहास ने सोमवार को डीएसपी एजाज अहमद नाइक, उप-निरीक्षक रियाज अहमद मीर, विशेष पुलिस अधिकारी जहांगीर अहमद बेग, हेड कांस्टेबल मोहम्मद यूनिस खान और तनवीर अहमद मल्ला, कांस्टेबल शाकिर हुसैन खोजा और अल्ताफ हुसैन भट एवं कांस्टेबल शाहनवाज अहमद दीदाद द्वारा दायर अलग-अलग जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। सभी आरोपियों को इसी साल 20 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था।

गौरतलब है कि यह मामला रुबीना अख्तर की ओर से उच्चतम न्यायालय में दायर एक शिकायत से उत्पन्न हुआ है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके पति कांस्टेबल खुर्शीद अहमद चौहान को संयुक्त पूछताछ केंद्र (जेआईसी) कुपवाड़ा में छह दिनों के लिए अवैध रूप से कैद रखा गया था और 'नारकोटिक्स' से संबंधित पूछताछ की आड़ में हिरासत में यातना दी गई थी। चोटों की गंभीरता के कारण श्री चौहान को 26 फरवरी, 2023 को श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसकेआईएमएस) में भर्ती कराया गया था।

श्रीमती चौहान ने पहले प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करते हुए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का रुख किया था, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसके कारण उन्होंने उच्चतम न्यायालय का रुख किया।

उच्चतम न्यायालय ने 21 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी और आदेश दिया था कि हिरासत में यातना के लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले पुलिस कर्मियों को 22 जुलाई से 'तत्काल और एक महीने की अवधि के भीतर' गिरफ्तार किया जाए। इसके अलावा, उच्चतम ने सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर जांच पूरा करने का निर्देश दिया था।

जांच के दौरान, सीबीआई ने मेडिकल रिपोर्ट, जेआईसी से सीसीटीवी फुटेज, गवाहों की गवाही और डीएनए साक्ष्य एकत्र किए। एजेंसी के अनुसार, इन सभी साक्ष्यों ने हिरासत में यातना के आरोपों की पुष्टि की। सीसीटीवी 26 फरवरी, 2023 की फुटेज कथित तौर पर पीड़ित को जेआईसी परिसर के अंदर लंगड़ाते हुए दिखाती है।

आरोपियों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया कि अधिकारियों का सेवा रिकॉर्ड साफ है। हत्या का प्रयास (धारा 307) और खतरनाक हथियारों से गंभीर चोट पहुंचाने (धारा 326) को अंतिम आरोपपत्र में हटा दिया गया था। इसके साथ ही, अभियोजन के लिए सरकारी मंजूरी भी नहीं ली गयी थी। इसलिए आरोपी जमानत के हकदार हैं।

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