अहमदाबाद , दिसंबर 07 -- गुजरात के राज्यपाल एवं गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति आचार्य देवव्रतजी ने रविवार को कहा कि किसी भी संस्था की सबसे बड़ी संपत्ति उसके स्नातक (पूर्व विद्यार्थी) हैं।

श्री देवव्रत ने गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद में आयोजित स्नातक संघ सम्मेलन के समापन समारोह में गांधीवादी शिक्षा, आत्मनिर्भरता, ग्रामीण विकास और प्राकृतिक खेती के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने महादेव देसाई पुरस्कार से सम्मानित भगवानदास पटेल सहित सभी प्रतिष्ठित पूर्व विद्यार्थियों को हृदयपूर्वक अभिनंदन दिया और कहा कि किसी भी संस्था की सबसे बड़ी संपत्ति उसके पूर्व विद्यार्थी हैं। वह संस्था की प्रतिष्ठा और गौरव के सच्चे वाहक होते हैं।

राज्यपाल ने कहा कि गुजरात विद्यापीठ के ट्रस्टी मनसुखभाई पटेल को हाल ही में जमनालाल बजाज पुरस्कार प्रदान किया गया था, जो ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान में उनके दीर्घकालिक योगदान की राष्ट्रीय स्वीकृति है। उन्हें बधाई देते हुए कहा कि इस वर्ष आयोजित स्नातक संघ सम्मेलन और पिछले सम्मेलन के बीच लगभग आधी सदी का अंतर था। इस टूटी हुई परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए कुलपति डॉ. हर्षदभाई पटेल, रजिस्ट्रार डॉ. हिमांशु पटेल और उनकी पूरी टीम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि गुजरात विद्यापीठ के स्नातक संस्था की सबसे बड़ी ताकत हैं। उन्हें फिर से जोड़ना, गांधीवादी परंपरा को मजबूत करना और अगली पीढ़ी को उनसे जोड़ना, बहुत प्रशंसनीय कार्य है।

उन्होंने कहा कि गुजरात विद्यापीठ ने लगभग 28,000 विद्यार्थियों को शिक्षित करके समाज को समर्पित किया है, जिनमें से आठ-दस हजार पूर्व विद्यार्थियों से इस संघ द्वारा संपर्क किया गया था, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ की मुख्य भावना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि बापू का उद्देश्य केवल डिग्री देना नहीं था, बल्कि ऐसे युवक और युवतियां तैयार करना था जो स्वावलंबी और आत्मनिर्भर हों, देशभक्ति और सेवा की भावना से रंगे हुए हों, भारतीय संस्कृति, सत्य, अहिंसा और नैतिक मूल्यों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और ग्रामीण समाज के उत्थान के लिए काम करें।

राज्यपाल ने कहा कि यदि आज गांधीजी जीवित होते तो वह जहरीली, रासायनिक आधारित खेती का कड़ा विरोध करते और गाय आधारित, प्राकृतिक, जहरमुक्त खेती का समर्थन करने वाले पहले व्यक्ति होते। उन्होंने गुजरात विद्यापीठ की "ग्राम उत्थान यात्रा" का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले दो वर्षों में गुजरात विद्यापीठ के लगभग 2,000 विद्यार्थी और 300 से अधिक फैकल्टी और स्टाफ ने लगभग 15,000 गांवों तक पहुंचने के लिए टीमें बनाई हैं। इन यात्राओं के माध्यम से ग्रामीणों में देसी गाय आधारित प्राकृतिक खेती, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, स्वदेशी, स्वच्छता, जन स्वास्थ्य और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने जैसे विषयों पर व्यापक जनजागृति लाई गई है।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित