वाराणसी , अक्टूबर 16 -- काशी में गंगा की मिट्टी से पारंपरिक तरीके से तैयार की गई लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग न केवल पूर्वांचल में, बल्कि दिल्ली और बिहार में भी खूब बढ़ी है। रेवड़ी तालाब और लक्सा क्षेत्र में कारीगर मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। प्रजापति परिवार से जुड़े कई सदस्य दशकों से इन मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं।
स्वदेशी वस्तुओं के प्रति बढ़ते रुझान के कारण इस बार मिट्टी की मूर्तियों की मांग में काफी इजाफा हुआ है। प्रजापति कारीगर बताते हैं कि उनके परिवार में होली के बाद से ही मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया जाता है। सांचों में ढालकर मूर्तियों को सुखाया और पक्का किया जाता है, फिर रंगों से सजाया जाता है। इस काम में घर की महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं।
मिट्टी की मूर्तियां सबसे पवित्र मानी जाती हैं और पर्यावरण की दृष्टि से भी इन्हें बेहतर माना जाता है। गाजीपुर, बलिया, मऊ, चंदौली, आजमगढ़, गोरखपुर समेत कई जिलों में इन मूर्तियों की आपूर्ति की जाती है। बिहार और दिल्ली के व्यापारी भी बड़ी संख्या में मूर्तियां ले जाते हैं। पैकिंग के दौरान विशेष सावधानी बरती जाती है ताकि मूर्तियां खंडित न हों। मूर्तियों की कीमत 30 रुपये से लेकर 150 से 200 रुपये तक होती है। बारीक कारीगरी वाली मूर्तियों की कीमत अधिक होती है।
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