पटना , अक्टूबर 24 -- कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' पर साझा किये गये संदेश के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की आरक्षण नीति और जातिगत जनगणना को लेकर उनकी कथनी और करनी पर सवाल उठाया है।

कांग्रेस महासचिव श्री रमेश ने कहा है कि यह सवाल केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक प्रतिबद्धता से जुड़े हैं। उन्होंने अपने पोस्ट में प्रधानमंत्री को सीधा जवाब देने की चुनौती दी और सवाल किया है कि, 'क्या अप्रैल, 1989 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जनसंघ ने मिलकर जननायक कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिराई थी?'उन्होंने लिखा है कि तब कर्पूरी ठाकुर ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 26 प्रतिशत आरक्षण देने के लिये एक अधिनियम पारित किया था, जिसका आरएसएस और जनसंघ ने विरोध किया था।

श्री रमेश ने आरोप लगाया है कि आरएसएस की विचारधारा हमेशा से सामाजिक न्याय के खिलाफ रही है और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को कमजोर करने का काम करती रही है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में अंतर बताते हुये लिखा है कि, '28 अप्रैल, 2024 को आपने कहा था कि जो लोग जातिगत जनगणना की वकालत करते हैं वे 'अर्बन नक्सल' मानसिकता वाले हैं, लेकिन अब वही प्रधानमंत्री कहते हैं कि अगले साल जातिगत जनगणना करायेंगे। आखिर ऐसा अचानक बदलाव क्यों?'उन्होंने कहा कि यह जनता को भ्रमित करने की राजनीति है और प्रधानमंत्री को स्पष्ट करना चाहिये कि वे जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं या नहीं।

श्री रमेश ने बिहार सरकार पर भी निशाना साधा और पूछा कि, 'बिहार में महागठबंधन सरकार ने जाति सर्वेक्षण के आधार पर दलित, आदिवासी, ओबीसी और ईबीसी समुदायों को 65 प्रतिशत आरक्षण देने वाला अधिनियम पारित किया, लेकिन जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है तो इस एक्ट को संवैधानिक संरक्षण क्यों नहीं दिया गया? इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं किया गया?'उन्होंने ने कहा कि अगर सरकार वास्तव में सामाजिक न्याय के प्रति ईमानदार होती, तो यह कदम बहुत पहले उठाया जा सकता था।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अंत में लिखा है कि प्रधानमंत्री और भाजपा को स्पष्ट बताना चाहिये कि वे सामाजिक न्याय की राजनीति के साथ हैं या सत्ता के समीकरण के साथ।

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