बेंगलुरु , नवंबर 27 -- कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच सत्ता के नेतृत्व की खींचतान के बीच अब प्रभावशाली धार्मिक नेताओं और वरिष्ठ मंत्रियों की दखलांदाजी भी सामने आयी है।

प्रदेश में 2023 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही चल रहा यह विवाद इस हफ्ते दोनों नेताओं के साथ जुड़े समुदाय के साधु-संत के नए बयानों के बाद फिर से सामने आ गया। नेतृत्व का मंथन जो पहले काफी हद तक पार्टी के गलियारों तक ही सीमित था, अब जाति के पहलुओं के और साफ होने के साथ सार्वजनिक हो गया है।

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के समर्थक माने जाने वाले एक प्रमुख कुरुबा संत ने जोर दिया है कि "विधायक ही तय करते हैं कि मुख्यमंत्री कौन होगा," जिससे मुख्यमंत्री की लंबे समय से चली आ रही इस दलील को बल मिला कि कानूनी समर्थन से नेतृत्व तय होना चाहिए। इस टिप्पणी को उप मुख्यमंत्री शिवकुमार के पक्ष में नेतृत्व बदलने की वकालत करने वाले गुटों के लिए एक छोटी सी चेतावनी के रूप में समझा जा रहा है।

वोक्कालिगा संतों ने श्री शिवकुमार को अपना समर्थन फिर से दिया है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि समुदाय को उम्मीद है कि उन्हें राज्य का नेतृतव करने का मौका दिया जाना चाहिए। उनके एक साथ दिए गए बयानों ने कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बढ़ा दिया है, जिसने सरकार बनने के दौरान शिवकुमार को समयानुसार व्यवस्था का भरोसा दिया था।

प्रदेश के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने इस मामले में कहा कि नेतृत्व के मुद्दों को पारदर्शिता तरीके से और सरकार की स्थिरता के हित में सुलझाया जाना चाहिए। श्री परमेश्वर की बातों से यह सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि "क्या वह खुद को एक विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं या सिर्फ़ पार्टी में आतंरिक अनुशासन की मांग कर रहे हैं।"दूसरी तरफ श्री सिद्दारमैया और श्री शिवकुमार दोनों ही नेता पहले की तरह ही इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सरकार स्थिर है।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित