भुवनेश्वर , नवंबर 26 -- ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को एक विधवा को 20 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है, जिसके पति की जेल अधिकारियों द्वारा उचित इलाज न कराने के कारण जेल में मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति बिरजा प्रसन्ना सतपथी की पीठ ने राज्य को लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए गृह सचिव को यह आदेश मिलने की तारीख से छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता के पक्ष में मुआवजे की राशि जारी करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति सतपथी ने मंगलवार को सुनाए आदेश में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा, "जीवन का अधिकार" किसी भी सभ्य समाज में गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार शामिल करता है। इसका मतलब भोजन, पानी, स्वच्छ वातावरण, शिक्षा, चिकित्सा देखभाल तथा आश्रय का अधिकार है।"याचिकाकर्ता सबिता निशंक के स्वर्गीय पति कृतिबास खटेई पुरी जिले के ओपेगा और पिपली ग्राम पंचायत (क्षेत्र) में पंचायत कार्यकारी अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। उन्हें 29 सितंबर 2016 को एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था और नीमापाड़ा सब-जेल में विचाराधीन कैदी के रूप में रखा गया था।

याचिकाकर्ता के पति को कथित तौर पर उच्च मधुमेह का उचित इलाज कभी नहीं दिया गया, जिससे उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई। अंततः 25 जनवरी 2017 को बेहतर इलाज के लिए उन्हें पहले जिला मुख्यालय अस्पताल, पुरी और फिर एस.सी.बी. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, कटक रेफर किया गया, लेकिन अगले ही दिन एस.सी.बी. मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, कटक में उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

चूंकि याचिकाकर्ता के पति की हालत पुलिस हिरासत में ही गंभीर हुई और उसका उचित इलाज नहीं किया गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई, इसलिए कोर्ट ने माना कि विचाराधीन कैदी को उचित चिकित्सा सुविधा न उपलब्ध कराने में जेल अधिकारियों की घोर लापरवाही सिद्ध होती है। अतः याचिकाकर्ता का मुआवजे का दावा पूरी तरह न्यायसंगत है और वे अदालत की ओर से निर्धारित 20 लाख रुपये की मुआवजा राशि की हकदार हैं।

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