कोलकाता , अक्टूबर 19 -- पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची के प्रारंभिक मैपिंग में 2002 की मतदाता सूची के साथ लगभग 3.48 करोड़ मतदाताओं का मिलान हुआ है जो राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 45.7 प्रतिशत है।

यह कवायद 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की मतदाता सूची को दुरूस्त करने की दिशा में पहला बड़ा कदम है।

पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय के अधिकारियों के अनुसार, मैपिंग में वर्तमान मतदाता सूची की तुलना 2002 की मतदाता सूची से की गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर यूनीवार्ता को बताया, "मैपिंग में वर्तमान मतदाता सूची की तुलना 2002 की सूची से की जा रही है। जिन मतदाताओं के नाम दोनों सूचियों में मेल खाते हैं, वे एसआईआर के दौरान खुद से ही सूची में शामिल हो जाएंगे।"अधिकारी ने बताया कि अब तक 3.48 करोड़ मतदाताओं का मिलान हुआ है, जो राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 45.7 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि लगभग आधे मतदाताओं के नाम 2002 की सूची में भी थे, जो निरंतरता दर्शाता है। बाकी नामों की अब सत्यापन प्रक्रिया होगी।"सीईओ कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि राज्य के 23 में से सात जिलों में मैपिंग प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। शेष जिलों में यह काम तेजी से चल रहा है, हालांकि उत्तर बंगाल के कुछ हिस्सों में हाल की प्राकृतिक आपदाओं के कारण देरी हुई है। अधिकारी ने कहा, "उत्तर बंगाल के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, अधिकांश जिलों में 90 प्रतिशत मैपिंग कार्य पूरा हो चुका है। जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग में बाढ़ और भूस्खलन के कारण देरी हुई, लेकिन अब काम फिर से शुरू हो गया है और जल्द पूरा होगा।"जिन जिलों में मैपिंग पूरी हो चुकी है, वहां पुरानी और नई मतदाता सूचियों के बीच मिलान का प्रतिशत इस प्रकार है: झारग्राम- 51.36 , पश्चिम मेदिनीपुर- 62.94, कलिम्पोंग- 65.27, अलीपुरद्वार- 53.73, पुरुलिया- 61.29, कोलकाता उत्तर- 55.35, और मालदा- 54.49 प्रतिशत । अधिकारियों के अनुसार, इन आंकड़ों से पता चलता है कि इन जिलों में लगभग आधे नाम 2002 से अपरिवर्तित हैं, जबकि बाकी नामों का सत्यापन होगा।

आयोग के सूत्रों ने मैपिंग में देरी का कारण पिछले दो दशकों में तेजी से शहरीकरण और प्रवास को बताया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "कोलकाता के उपनगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है। कई लोग शहर से बाहर चले गए हैं, जबकि अन्य राज्यों से लोग यहां बसे हैं। इस निरंतर आवाजाही ने मैपिंग को जटिल बनाया है।"2002 में कई जिलों में मतदाताओं की संख्या काफी कम थी, जिससे पुराने डेटा को वर्तमान रिकॉर्ड के साथ मिलाना चुनौतीपूर्ण रहा। अधिकारियों ने बताया कि शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में डेटा में विसंगतियां अधिक हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि 2002 से 2024 के बीच राज्य की मतदाता संख्या में 65.8 प्रतिशत की "असामान्य" वृद्धि दर्ज की गई है, जो भारत के प्रमुख राज्यों में सबसे अधिक है।

वर्ष 2002 में बंगाल में लगभग 4.58 करोड़ मतदाता थे, जो अब बढ़कर 7.60 करोड़ हो गए हैं। चुनाव अधिकारियों का मानना है कि यह वृद्धि केवल जनसांख्यिकीय बदलाव से नहीं हो सकती। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "इस अवधि में मतदाताओं की संख्या में तार्किक वृद्धि 48 से 50 प्रतिशत के दायरे में होनी चाहिए थी। बंगाल में 65.8 प्रतिशत की वृद्धि राष्ट्रीय प्रवृत्ति से कहीं अधिक है।"आयोग के अधिकारियों का मानना है कि यह असामान्य वृद्धि प्रशासनिक खामियों के कारण है, खासकर बूथ-स्तरीय अधिकारियों द्वारा मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाने में विफलता के कारण। साल 2002 के एसआईआर में 28 लाख से अधिक नाम हटाए गए थे। अधिकारियों का कहना है कि अब इसी तरह की कवायद से मतदाता सूची में दर्ज नामों में कमी आएगी।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित