पणजी , नवंबर 25 -- बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार राज कुमार हिरानी का कहना है कि एक अच्छे लेखक को जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि वास्तविक अनुभव ही कहानियों को अविश्वसनीय, अद्वितीय और अत्यंत आकर्षक बनाते हैं।

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में ''फिल्म, लेखन और संपादन के दो मेज़ों पर बनती है : एक परिप्रेक्ष्य" विषय पर आयोजित मास्टर क्लास-सह-कार्यशाला को संबोधित करते हुये राज कुमार हिरानी ने कहा कि लेखन कल्पनाशीलता है, संपादन अनुभव की भावना। लेखक पहला मसौदा लिखता है, जबकि संपादक उसे आखिरी शक्ल देता है। विषयवस्तु फिल्म की आत्मा होती है, जबकि कहानी में संघर्ष इसका प्राण वायु होता है।

हिरानी ने कहा कि लेखक स्वप्न देखने का स्थान है। लेखक के सामने कल्पना की असीम स्वतंत्रता होती है - असीमित आकाश, सुहावना सूर्योदय, मंझे हुए कलाकार, बजट और किसी बंधन की चिंता नहीं। लेकिन जैसे ही ये कल्पित दृश्य संपादक की मेज़ पर पहुंचते हैं, वास्तविकता इसमें बदलाव ला देती है। हिरानी ने कहा कि एक फिल्म तभी शुरू होती है, जब कोई किरदार सचमुच कुछ चाहता है और यही चाहत कहानी की धड़कन बन जाती है। इसमें उसका संघर्ष प्राण वायु है,जिसके बिना, कुछ भी नहीं धड़कता।

हिरानी ने लेखकों से अपनी कहानियां जीवंत अनुभवों पर रचने को कहा। उन्होंने कहा कि एक अच्छे लेखक को जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए क्योंकि वास्तविक अनुभव ही कहानियों को अविश्वसनीय, अद्वितीय और अत्यंत आकर्षक बनाते हैं। उन्होंने कार्यशाला में प्रतिभागियों को यह भी स्मरण कराया कि प्रस्तुति को स्क्रीन नाट्य स्वरूप में अदृश्य रूप से बुना जाना चाहिए, और फिल्म का विषय, उसकी आत्मा हर दृश्य में अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद होनी चाहिए।

हिरानी ने अपने पहले प्रेम, संपादन, के बारे में उत्साहपूर्वक चर्चा करते हुए फिल्म संपादन की गहरी, लेकिन छिपी हुई शक्ति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब फुटेज संपादक की मेज पर पहुंचती है, तो वहां सब कुछ बदल जाता है। फिल्म संपादक कहानी को दोबारा नए सिरे से गढ़ता है। वह ऐसा गुमनाम नायक है जिसका काम अदृश्य होता है, लेकिन वही फिल्म के प्रवाह को बनाए रखता है।संपादक के टूलकिट का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि संपादन की इकाई फिल्म शॉट है, लेकिन कोई एकल शॉट, अगर किसी अलग संदर्भ में रख दिया जाए तो अर्थ पूरी तरह बदल जाता है। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि यह इतना शक्तिशाली होता है कि एक फिल्म संपादक किसी कहानी को पूरे 180 डिग्री पलट सकता है।

हिरानी ने ज़ोर देकर कहा कि खलनायकों का दृष्टिकोण भी नायक जितना ही मज़बूत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर किरदार को लगता है कि वह सही है और यहीं से कहानी को ऊर्जा मिलती है। अपने-अपने सच का यही टकराव, नज़रियों के बीच का यही तनाव, कहानी को गतिशील बनाता है।

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