रामनगर , नवंबर 08 -- उत्तराखंड राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर पूरे राज्य में रजत जयंती महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, इसी क्रम में शनिवार को रामनगर तहसील सभागार में राज्य आंदोलनकारियों के सम्मान समारोह का आयोजन हुआ, यह कार्यक्रम रामनगर और कालाढूंगी तहसीलों का संयुक्त आयोजन था।
राज्य सरकार की ओर से इस सम्मान समारोह में कुल 94 राज्य आंदोलनकारियों को चिह्नित किया गया था, जिनमें रामनगर के 64 और कालाढूंगी के 30 आंदोलनकारी शामिल थे, हालांकि कार्यक्रम के दिन सिर्फ सात लोग ही पहुंचे, वो भी आंदोलनकारियों के आश्रित। राज्य आंदोलनकारियों की कम उपस्थिति ने आयोजन की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए।
रामनगर तहसील के 64 में से केवल तीन आंदोलनकारियों के परिजन सम्मान लेने पहुंचे - स्व. सुमित्रा बिष्ट के बेटे संजय बिष्ट, स्व. सुरेश गुप्ता की पत्नी बृजेश गुप्ता, और स्व. ओमप्रकाश सारस्वत के पुत्र अखिलेश प्रताप सारस्वत। वहीं कालाढूंगी तहसील से स्व. गंगा पाठक के पुत्र सोनू पाठक, नवीन चंद्र भट्ट, चंद्रशेखर डुंगरियाल, और तारा नेगी उपस्थित रहे।
इन सभी को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दर्जा राज्य मंत्री सुरेश भट्ट और रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट ने शॉल ओढ़ाकर और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
राज्य आंदोलनकारियों ने इस समारोह का बहिष्कार कर सरकार के खिलाफ नाराज़गी जताई। उनका कहना है कि सरकार दिखावटी सम्मान कर रही है जबकि उनकी पुनर्वास, पेंशन और पहचान से जुड़ी मांगे आज तक पूरी नहीं हुई हैं। आंदोलनकारियों ने कहा कि हम सम्मान के भूखे नहीं हैं, हमें हमारे हक़ चाहिए।
उन्होंने कहा कि जिन्होंने उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष किया, जेल गए, या अपने परिवार के सदस्य खोए, उन्हें सिर्फ शॉल और प्रमाणपत्र से नहीं बल्कि अधिकारों से सम्मान मिलना चाहिए।
कार्यक्रम में श्री भट्ट ने कहा कि राज्य निर्माण में आंदोलनकारियों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य आंदोलनकारियों की समस्याओं के समाधान के लिए संवेदनशील हैं। सरकार पहले भी कई मांगों को पूरा कर चुकी है और बाकी पर काम जारी है।
समारोह में रामनगर उपजिलाधकिारी प्रमोद कुमार, तहसीलदार मनीषा मारकाना, कालाढूंगी एसडीएम विपिन चंद्र पंत, ब्लॉक प्रमुख मंजू नेगी, और ज्येष्ठ ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी सहित कई अधिकारी और जनप्रतिनिधि मौजूद रहे।
हालांकि कार्यक्रम का माहौल भावनात्मक रहा, पर आंदोलनकारियों की अनुपस्थिति ने इसे अधूरा बना दिया। जिन आश्रितों को सम्मान मिला, उन्होंने कहा कि यह गर्व का क्षण है, लेकिन वे चाहते हैं कि सरकार राज्य निर्माण में शहीद हुए लोगों के सपनों को साकार करे।
राज्य स्थापना के रजत जयंती वर्ष का यह कार्यक्रम सरकार की ओर से आंदोलनकारियों को धन्यवाद और सम्मान देने की पहल थी। मगर आंदोलनकारियों के बहिष्कार ने यह संदेश दिया कि सम्मान से पहले समाधान ज़रूरी है।
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