नयी दिल्ली , दिसंबर 23 -- उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार के राजस्व गांवों का नाम निजी लोगों के नाम पर रखने वाली अधिसूचना रद्द कर दी है। न्यायालय ने कहा कि राजस्थान सरकार ने नए बनाए गए राजस्व गांवों का नाम निजी लोगों के नाम पर रखकर अपनी ही नीति का उल्लंघन किया है और राजस्थान उच्च न्यायालय के एकलपीठ के न्यायमूर्ति के अधिसूचना रद्द करने के आदेश को बहाल कर दिया है।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अराधे की पीठ ने बाड़मेर जिले के सोहदा गांव के निवासियों की याचिका को स्वीकार कर राजस्थान उच्च न्यायालय के खंडपीठ के फैसले को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने राजस्व गांव ''अमरगढ़'' और ''सगतसर'' बनाने को सही ठहराया था।
यह विवाद 31 दिसंबर, 2020 को राज्य सरकार द्वारा राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम 1956 के सेक्शन 16 के तहत जारी किए गए एक अधिसूचना से उत्पन्न हुआ, जिसमें कई नए राजस्व गांव बनाए गए थे। इनमें बाड़मेर जिले के सोहदा गांव में मेघवालों की ढाणी से अलग किए गए अमरगढ़ और सगतसर शामिल थे।
अधिसूचना जारी होने से पहले, तहसीलदार ने सत्यापित किया था कि नए राजस्व गांव बनाने के लिए सभी कानूनी ज़रूरतें पूरी हो गई हैं और उनके बनने को लेकर कोई विवाद नहीं है। प्रस्तावित गांवों के लिए ज़मीन दान करने की मंज़ूरी देने वाले लोगों ने भी शपथपत्र दिए थे।
2025 में ग्राम पंचायतों के पुर्नगठन के लिए बाद गांववालों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि 'अमरगढ़' और 'सगतसर' नाम निजी लोगों, यानी अमरराम और सगत सिंह के नामों से लिए गए हैं। गांववालों ने राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और 2020 की अधिसूचना को चुनौती दी।
न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने 11 जुलाई, 2025 को अपने आदेश में कहा कि गांवों का नामकरण राज्य सरकार के 20 अगस्त, 2009 के परिपत्र का उल्लंघन है, जो किसी भी व्यक्ति, धर्म, जाति या उपजाति के नाम पर राजस्व गांव का नाम रखने पर रोक लगाता है। न्यायाधीश ने पहले के उदाहरणों का हवाला देते हुए अमरगढ़ और सगतसर के बारे में जारी अधिसूचना को रद्द कर दिया।
हालांकि, उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पांच अगस्त, 2025 के अपने फैसले में एकल न्यायाधीश के आदेश को पलट दिया और कहा कि पहले के फैसलों का फायदा नहीं दिया जा सकता क्योंकि गांवों को बनाने की प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी थी।
उच्चतम न्यायालय ने अपील को मंज़ूरी देते हुए माना कि खंडपीठ ने 2009 के परिपत्र के अनुबंध को नज़रअंदाज़ करके गलती की थी। न्यायालय ने कहा कि परिपत्र का खंड चार साफ कहता है कि किसी राजस्व गांव का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर आधारित नहीं होना चाहिए, और यह नीति सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए बनाई गई थी।
उच्चतम न्यायालय ने खंडपीठ की दलील को खारिज करते हुए कहा कि एक लंबित सूची उसकी वरीयता के आधार पर फैसला किया जाना चाहिए और राज्य इस आधार पर किसी गैर-कानूनी कार्रवाई को सही नहीं ठहरा सकता कि मामला खत्म हो गया है।
उच्चतम न्यायालय ने पांच अगस्त, 2025 के खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया और 11 जुलाई, 2025 के एकल न्यायाधीश के आदेश को बहाल कर दिया।
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