नयी दिल्ली , दिसंबर 1 -- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) को पूरे भारत में डिजिटल गिरफ्तारी के मामलों की चिंताजनक वृद्धि की व्यापक जाँच शुरू करने का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने एक न्याय मित्र की ओर से उठाए गये डिजिटल गिरफ्तारी मामलों, निवेश संबंधी घोटालों और पार्ट-टाइम नौकरी घोटालों पर संज्ञान लिया और टिप्पणी की कि ऐसे अपराधों में अक्सर जबरन वसूली या साजिशपूर्ण षडयंत्र शामिल होते हैं जो पीड़ितों को बड़ी रकम जमा करने के लिए लुभाते हैं।
अदालत ने विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों के लिए खतरे की गंभीरता पर जोर देते हुए सीबीआई को साइबर धोखाधड़ी की अन्य श्रेणियों को लेने से पहले डिजिटल गिरफ्तारी घोटालों की जाँच को प्राथमिकता देने का आदेश दिया।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि जहाँ भी धोखाधड़ी वाले खातों का उपयोग किया गया है, वहाँ सीबीआई के पास भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत बैंक कर्मियों की भूमिका की जाँच करने का पूरा अधिकार होना चाहिए। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या संदिग्ध खातों की पहचान करने और अपराध की आय को 'फ्रीज' करने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) या 'मशीन लर्निंग' मदद कर सकते हैं।
न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी मध्यस्थ नियमों, 2021 के तहत अधिकारियों को जाँच में पूरा सहयोग करने के लिए कहा और उन राज्यों को 'सामान्य सहमति' देने का निर्देश दिया गया जिन्होंने सीबीआई को ऐसी अनुमति नहीं दी है, ताकि देश भर में एक समान जाँच सुनिश्चित की जा सके।
पीठ ने सीमा पार भागीदारी की संभावना पर विचार करते हुए सीबीआई को आवश्यकता पड़ने पर इंटरपोल से सहायता लेने की अनुमति दी और दूरसंचार विभाग को सिम कार्डों के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा।
न्यायालय ने राज्यों को साइबर अपराध केंद्र स्थापित करने में तेजी लाने और सामने आने वाली किसी भी बाधा की रिपोर्ट करने के लिए भी याद दिलाया। ये निर्देश एक स्वतः संज्ञान मामले में अक्टूबर में जारी किए गए थे, जब एक वरिष्ठ नागरिक दंपति ने अदालत को सूचित किया था कि सीबीआई, खुफिया ब्यूरो और न्यायपालिका का अधिकारी बताकर कुछ धोखेबाजों ने उनसे 1.5 करोड़ रूपये ठग लिये थे। धोखेबाजों ने फोन और वीडियो कॉल का इस्तेमाल किया और गिरफ्तारी की धमकी देकर पैसे वसूलने के लिए उच्चतम न्यायालय के जाली आदेशों का भी इस्तेमाल किया था।
पीठ ने टिप्पणी की कि जब से अदालत ने संज्ञान लिया है, कई पीड़ित सामने आए हैं, कई राज्यों में प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं और एक परेशान करने वाला पैटर्न सामने आया है। यह दर्शाता है कि धोखेबाज नए तरीकों की तलाश करना जारी रखते हैं, जिसमें पार्ट-टाइम नौकरी घोटाले भी शामिल हैं। ये धोखेबाज शुरू में हानिरहित कार्यों को शामिल करते हैं लेकिन बाद में बड़ी रकम की मांग करने लगते हैं।
न्यायालय ने विशेष रूप से इस बात पर चिंता व्यक्त की कि वरिष्ठ नागरिकों को अक्सर निशाना बनाया जाता है और जोर दिया कि ऐसे मामलों की प्राथमिकता के आधार पर जाँच की जानी चाहिए।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित