मुंबई , नवंबर 25 -- इथाेपिया के अफार क्षेत्र में हेली गुब्बी ज्वालामुखी के भयानक विस्फोट से उत्पन्न हुई विशाल राख का बादल पूर्वी दिशा में बढ़ रहा है और मंगलवार शाम तक इसके भारतीय हवाई क्षेत्र से बाहर निकलने की उम्मीद है।

यह राख जमीन पर कोई खतरा पैदा नहीं कर रही है, लेकिन 8.5 किलोमीटर से 15 किलोमीटर (लगभग 15,000-45,000 फीट) की ऊंचाई पर मौजूदगी के कारण विमानन सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता बढ़ गयी है। अधिक ऊंचाई पर हवाओं के साथ बहकर आ रहा यह राख का बादल पहले ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर भारत और गुजरात के कुछ हिस्सों के ऊपर से गुजर चुका है।

मौसम विज्ञान के पूर्वानुमान के अनुसार यह आगे राजस्थान, उत्तर-पश्चिम महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और अंत में हिमालय क्षेत्र तक फैल जाएगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और मुंबई, नयी दिल्ली तथा कोलकाता के मौसम विभाग कार्यालयों ने हवाई अड्डों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन मानक एसआईजीएमईटी ( विमानों और पायलटों के लिए महत्वपूर्ण मौसम संबंधी सूचना) जारी की है।

इन चेतावनियों में प्रभावित हवाई क्षेत्र और विशेष फ्लाइट लेवल से बचने की सलाह दी गई है। उपग्रह चित्रों, राख फैलाव मॉडल और मौसम सलाह की निरंतर निगरानी के आधार पर उड़ान योजना, रूट बदलाव और ईंधन गणना की जा रही है।

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने सभी एयरलाइंस को विस्तृत सुरक्षा परामर्श जारी करते हुए निर्देश दिया है कि निर्धारित राख प्रभावित क्षेत्रों से पूरी तरह बचाव किया जाए। एयरलाइंस को उड़ान योजना में बदलाव, विमानों का रूट बदलना और ईंधन जरूरतों का पुनर्मूल्यांकन करने को कहा गया है।

विमानन अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि ज्वालामुखी की राख अत्यधिक उच्च तापमान पर जेट इंजन के अंदर पिघल सकती है, जिससे गंभीर इंजन क्षति या इंजन फेल भी हो सकता है। हालांकि मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बादल के सबसे घने हिस्से के ठीक नीचे नहीं है, लेकिन शहर से जुड़ी उड़ानें- विशेष रूप से अरब सागर और खाड़ी क्षेत्र की अंतरराष्ट्रीय उड़ानें-प्रभावित हो सकती हैं।

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