नयी दिल्ली , अक्टूबर 07 -- उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की असम शाखा द्वारा कथित तौर पर पोस्ट किए गए एक 'आपत्तिजनक' वीडियो को सोशल मीडिया से हटाने की याचिका पर मंगलवार को नोटिस जारी किया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पत्रकार कुर्बान अली और पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश की एक लंबित रिट याचिका में दायर एक आवेदन पर विचार करने का फैसला किया, जो घृणास्पद भाषण से संबंधित है।

उक्त वीडियो में कथित तौर पर मुसलमानों को खुलेआम बदनाम करने का आरोप लगाया गया था।

आवेदकों की ओर से पेश अधिवक्ता निजाम पाशा ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि चुनाव के दौरान पोस्ट किए गए वीडियो में दिखाया गया है कि अगर एक खास राजनीतिक दल सत्ता में नहीं आता है, तो एक खास समुदाय सत्ता संभाल लेगा।

इस पर पीठ ने कहा, "इसमें (वीडियो) टोपी और दाढ़ी वाले लोग दिखाई दे रहे हैं, ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेते हुए प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो अवमानना की कार्रवाई की जानी चाहिए।"आवेदन में एक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और भाजपा असम प्रदेश को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए वीडियो को हटाने के निर्देश देने की मांग की गयी थी।

याचिका में कहा गया है कि उक्त वीडियो को बड़ी संख्या में लोगों ने देखा है इसलिए सांप्रदायिक वैमनस्य, अशांति और दुश्मनी को और फैलने से रोकने के लिए इसे तुरंत हटाना आवश्यक है।

याचिका में दावा किया गया है कि भाजपा की असम इकाई ने इसी साल 15 सितंबर को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल "भाजपा असम प्रदेश" पर एक वीडियो प्रसारित किया, जिसमें "एक बेहद झूठा आख्यान दिखाया गया है, जिसमें दर्शाया गया है कि अगर भाजपा असम में सत्ता में नहीं रहती है तो मुसलमान असम पर कब्ज़ा कर लेंगे।"आवेदन में कहा गया है कि वीडियो में वर्तमान सत्ताधारी व्यवस्था में बदलाव के परिणामों को दर्शाया गया है और इसमें मुस्लिम लोगों (टोपी और बुर्का पहने हुए) को चाय बागानों, गुवाहाटी हवाई अड्डे और गुवाहाटी शहर पर कब्ज़ा करते हुए दिखाया गया है।

अधिवक्ता जफ़ीर अहमद के माध्यम से दायर आवेदन में तर्क दिया गया है, "सत्तारूढ़ सरकार, भाजपा-असम के लिए देश के संविधान को मानना अनिवार्य है। इसलिए संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा बनने वाले धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए रखने के लिए वे बाध्य है। हालाँकि, इसके आधिकारिक ट्विटर द्वारा प्रसारित वीडियो में मुसलमानों को खुले तौर पर निशाना बनाया गया है, उनकी निंदा की गई है और उन्हें बदनाम किया गया है।"याचिकाकर्ताओं ने कहा, "इस प्रकार से निष्पक्ष, न्यायसंगत और धर्मनिरपेक्ष होने का दायित्व एक निर्वाचित सरकार पर कहीं अधिक है।"आवेदन में दावा किया गया है कि वीडियो भाजपा असम के आधिकारिक एक्स हैंडल पर साझा किया गया था और 18 सितंबर, 2025 तक इसे 6,100 बार रीपोस्ट किया गया। इसे 19,000 बार लाइक किया गया और 46 लाख बार देखा गया।

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