नयी दिल्ली , अक्टूबर 26 -- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि निजाम तथा अंग्रेज जैसे अत्याचारी शासकों ने गरीब, वंचित तथा आदिवासी लोगों को गहरे जख्म देते हुए उन पर असीमित अत्याचार किये थे। इसके विरुद्ध कोमारम भीम तथा बिरसा मुंडा जैसे साहसी युवाओं ने अद्भुत शौर्य का परिचय देकर आदिवासियों को शोषण से मुक्ति दिलाने का काम किया ।

श्री मोदी ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम 'मन की बात' की 127वीं कड़ी में कहा कि ऐसी ही असाधारण आदिवासी विभूतियों को याद करने के लिए अगले महीने 15 तारीख को 'जनजातीय गौरव दिवस' मनाया जाएगा। यह भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती का सुअवसर है और इस मौके पर हमें अपने आदिवासी महापुरुषों के जीवन के बारे में पढ़कर उन्हें जरूर नमन करना चाहिए।

श्री मोदी ने कौतूहलपूर्ण अंदाज़ में कहा "मैं आपको जरा फ्लैशबैक में लेकर चलूँगा। आप कल्पना करिए, 20वीं सदी का शुरुआती कालखंड। तब दूर-दूर तक आजादी की कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। पूरे भारत में अंग्रेजों ने शोषण की सारी सीमाएं लांघ दी थी और उस दौर में हैदराबाद के देशभक्त लोगों के लिए दमन का दौर और भी भयावह था। वे क्रूर और निर्दयी निज़ाम के अत्याचारों को भी झेलने को मजबूर थे। गरीबों, वंचितों और आदिवासी समुदायों पर तो अत्याचार की कोई सीमा ही नहीं थी। उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं और उन पर भारी टैक्स भी लगाया जाता था। अगर वे इस अन्याय का विरोध करते, तो उनके हाथ तक काट दिए जाते थे।"उन्होंने कहा "ऐसे कठिन समय में करीब बीस साल का एक नौजवान इस अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ था। आज एक खास वजह से मैं,उस नौजवान की चर्चा कर रहा हूं। उसका नाम बताने से पहले मैं उसकी वीरता की बात आपको बताऊँगा। उस दौर में निज़ाम के खिलाफ एक शब्द बोलना भी गुनाह था। उस नौजवान ने सिद्दीकी नामक निज़ाम के एक अधिकारी को खुली चुनौती दे दी थी। निज़ाम ने सिद्दीकी को किसानों की फसलें जब्त करने के लिए भेजा था। लेकिन अत्याचार के खिलाफ इस संघर्ष में उस नौजवान ने सिद्दीकी को मौत के घाट उतार दिया। वह युवक गिरफ़्तारी से बच निकलने में भी कामयाब रहा। निज़ाम की अत्याचारी पुलिस से बचते हुए वो नौजवान वहाँ से सैकड़ों किलोमीटर दूर असम जा पहुंचा। मैं जिस महान विभूति की चर्चा कर रहा हूं उनका नाम है कोमारम भीम।"प्रधानमंत्री ने कहा कि 22 अक्टूबर को कोमारम भीम की जयंती मनायी गयी है। कोमारम भीम महज 40 वर्ष ही जीवित रहे ,लेकिन अपने जीवन-काल में उन्होंने अनगिनत लोगों, विशेषकर आदिवासी समाज के हृदय में अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने निज़ाम के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों में नयी ताकत भरी। कोमारम भीम अपने रणनीतिक कौशल के लिए भी जाने जाते थे। निज़ाम की सत्ता के लिए वे बहुत बड़ी चुनौती बन गए थे इसलिए 1940 में निज़ाम के लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी। युवाओं से मेरा आग्रह है कि वे उनके बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करें। कोमारम भीम की. ना विनम्र निवाली।

आयन प्रजल हृदयाल्लों... एप्पटिकी निलिचि-वूँटारू।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित