वाशिंगटन , नवंबर 26 -- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने एक बार फिर भारत की आर्थिक वृद्धि की तारीफ करते हुए बुधवार को कहा कि बाहरी बाधाओं के बावजूद यह मजबूत बनी रहेगी, हालांकि उसने करों में कटौती को लेकर वित्तीय अनुशासन बनाये रखने की भी सलाह दी है।

आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड के भारतीय अधिकारियों के साथ मशविरे के बाद जारी स्टाफ रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। वित्त वर्ष 2024-25 में वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर 6.5 प्रतिशत और 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2025) में 7.8 प्रतिशत रही है। उसने कहा कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई कम होने से मुद्रास्फीति की दर में भारी गिरावट आयी है। वित्तीय और कॉर्पोरेट सेक्टर मजबूत बने हुए हैं, वित्तीय अनुशासन बेहतर हुआ है और चालू खाते का घाटा कम हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बाहरी बाधाओं के बावजूद अनुकूल घरेलू कारकों की वजह से वृद्धि दर मजबूत बनी रहेगी और अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क का प्रभाव घरेलू उपभोग बढ़ने की वजह से कम होगा। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में हालांकि कटौती और आयकर छूट की सीमा बढ़ाने के मद्देनजर आईएमएफ ने वित्तीय अनुशासन बनाये रखने की जरूरत पर बल दिया है।

कार्यकारी निदेशकों ने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर जीएसटी और व्यक्तिगत आयकर में कटौती के प्रभाव पर नजदीकी नजर रखने की सलाह दी है। उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिकी आयात शुल्क के मद्देनजर निर्यातकों की दी गयी राहत लक्षित, पारदर्शी और सीमित समय के लिए होनी चाहिये। मध्यम अवधि में उन्होंने घरेलू राजस्व बढ़ाने पर ध्याने केंद्रित करने की सलाह दी है।

रिपोर्ट के अनुसार, विकसित अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में उच्च विकास संभावना वाले वृहत ढांचागत सुधारों को बढ़ावा देना मददगार हो सकता है।

निदेशकों ने मौद्रिक नीति पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि यदि अमेरिका के आयात शुल्क को लेकर बात नहीं बनती है तो नीतिगत ब्याज दरों में और कटौती की गुंजाइश रहेगी। उन्होंने केंद्रीय बैंक द्वारा पूर्व में की गयी कटौतियों का पूरा लाभ बैंकों के ग्राहकों तक जल्द पहुंचाने की भी वकालत की।

उल्लेखनीय है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 03 से 05 दिसंबर तक होगी। पिछली बैठक में समिति ने रेपो तथा अन्य नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। इस साल अब तक तीन बार में रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती की गयी है।

हाल में किये गये श्रम सुधारों की तारीफ करते हुए निदेशकों ने मानव पूंजी को बेहतर बनाने तथा श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और सार्वजनिक निवेश जारी रखने की सलाह दी है।

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