तिरुवनंतपुरम , दिसंबर 19 -- केरल के 30वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफके) ने एक गंभीर विवाद का रूप ले लिया है। इसकी शुरूआत तब हुयी जब केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उत्सव में प्रदर्शन के लिए चुनी गई कई फिल्मों को सेंसर-छूट प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया।

इसके चलते फिल्म निर्माताओं और सांस्कृतिक हस्तियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इसकी राजनीतिक आलोचना हो रही है और केरल राज्य सरकार की तरफ से भी जोरदार प्रतिक्रिया आई है।

महोत्सव के नियमों के मुताबिक, भले ही फिल्में व्यावसायिक प्रदर्शन के लिए न हों, मगर भारत में प्रदर्शन के लिए सभी फिल्मों को सेंसर-छूट प्रमाणपत्र लेना जरूरी है।

महोत्सव आयोजकों ने सभी आवेदन समय पर जमा किये, लेकिन केंद्र ने शुरू में 19 फिल्मों को छूट से इनकार कर दिया। इनमें विश्व विख्यात फिल्में और संवेदनशील राजनीतिक विषयों पर बनी फिल्में शामिल थीं।

इनमें कई फिल्में फिलिस्तीनी विषयों पर थीं, जिनमें महोत्सव की उद्घाटन फिल्म 'पैलेस्ताइन 36' भी शामिल थी। इसके अलावा 'वंस अपॉन ए टाइम इन गाजा', 'ऑल दैट्स लेफ्ट ऑफ यू', 'वजिब', और 'यस' जैसी फिल्में शामिल थीं।

इस इनकार के कारण इन फिल्मों का प्रदर्शन रोक दिया गया, जिससे चयनात्मक सेंसरशिप और राजनीतिक दखलअंदाजी के आरोप लगे।

लोगों की ओर से विरोध जताने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बाद में कुछ फिल्मों को मंजूरी दे दी, जिनमें सर्जेई आइंस्टीन की 'बैटलशिप पोतेमकिन', और 'बमाको', 'टिम्बकटू', 'रेड रेन', 'रिवरस्टोन', 'द आवर ऑफ द फर्नेस', और टनल्स: सन इन द डार्क' आदि हैं। फिर भी कई फिल्में जैसे 'अ पोएट: अनकन्सील्ड पोएट्री', 'क्लैश', 'ईगल्स ऑफ द रिपब्लिक' समेत कई प्रमुख फिलिस्तीनी फिल्मों को अब भी मंजूरी नहीं मिली हैं।

अधिकारियों ने संभावित कूटनीतिक संवेदनशीलता का हवाला दिया, मगर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया है।

वहीं केरल सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आदेश दिया कि सभी 19 फिल्में योजना के मुताबिक दिखाई जाएं। संस्कृति मामलों के मंत्री साजी चेरियन ने केंद्र के इस कदम की निंदा करते हुए इसे 'केरल की प्रगतिशील कला संस्कृति पर लोकतंत्र विरोधी हमला' बताया।

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और महोत्सव के अध्यक्ष रसूल पूकुट्टी ने भी इस निर्णय की आलोचना की। श्री पूकुट्टी ने बताया कि 'बैटलशिप पोतेमकिन' समेत कई फिल्में पहले ही ऑनलाइन मौजूद हैं।

इस विवाद ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील और क्लासिक फिल्मों को प्रतिबंधित करने को 'सिनेमाई निरक्षरता' करार दिया और केंद्र सरकार से पुनर्विचार की अपील की। श्री थरूर ने साथ ही चेतावनी दी कि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है।

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