नयी दिल्ली , दिसंबर 01 -- उच्चतम न्यायालय में चुनाव आयोग के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें असम में चुनाव नामावली का केवल "विशेष संक्षिप्त संशोधन" करने का निर्णय लिया गया है, जबकि बिहार सहित 12 अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में "विशेष गहन संशोधन" कराया जा रहा है।
यह याचिका गुवाहाटी उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मृणाल कुमार चौधरी ने दायर की है। याचिका में गत 17 नवंबर को जारी चुनाव आयोग के आदेश पर सवाल उठाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि जहां एक ओर छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में विशेष गहन संशोधन का निर्देश दिया गया है, वहीं असम में कम स्तर का संशोधन चुना गया है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह फैसला आयोग के अपने ही रुख के खिलाफ है। बिहार में एसआईआर के आदेश और उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि पूरे देश में विशेष गहन संशोधन किया जाएगा।
पूर्व असम गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा की रिपोर्ट और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता के बयानों का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि 1997 में ही असम में 40 से 50 लाख अवैध घुसपैठिए रह रहे थे। अभी भी लाखों अवैध प्रवासी राज्य में रह रहे हैं और उनके नाम मौजूदा मतदाता सूची में शामिल हैं। एसआईआर नहीं होने से ये लोग आगामी विधानसभा चुनावों में वोटिंग का अधिकार प्राप्त कर सकते हैं, जिससे राज्य का सामाजिक-राजनीतिक ढांचा बदल सकता है और जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा हो सकता है।
याचिका में सर्बानंद सोनोवाल-प्रथम और द्वितीय तथा नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए से जुड़े मामलों में शीर्ष न्यायालय की उन टिप्पणियों का भी जिक्र किया गया है, जिसमें अवैध प्रवासन के जनसांख्यिकीय प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी।
याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग के के "केवल विशेष संक्षिप्त संशोधन" के फैसले को रद्द करने और असम में भी अन्य राज्यों की तरह विशेष गहन संशोधन कराने का निर्देश देने की मांग की है। साथ ही, संशोधन प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड को मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए वैध दस्तावेज नहीं माना जाए, इसकी भी मांग की गई है।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित