गुवाहाटी , नवम्बर 25 -- असम विधानसभा में मंगलवार को राज्य सरकार ने नेल्ली नरसंहार से जुड़ी बहुचर्चित तिवारी आयोग और मेहता आयोग की रिपोर्टें पेश कर दीं। इस घटना को 42 वर्ष बीत चुके हैं, जिसमें 1800 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और लाखों लोग बेघर हो गए थे।
तिवारी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में लंबे समय से जनसंख्या संबंधी बदलाव देखे गए और पूर्वी बंगाल से लगातार हो रहे प्रवासन ने स्थानीय आबादी को प्रभावित किया। रिपोर्ट में उल्लेख है कि आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला। लोगों में यह भय था कि प्रवासियों के कारण स्थानीय समुदाय संख्या में पिछड़ जाएगा और असमिया पहचान संकट में पड़ेगी। आयोग के अनुसार 126 लोगों को रासुका के तहत हिरासत में लिया गया था। रिपोर्ट में 106 सरकारी और 151 गैर-सरकारी गवाहों के बयान शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि असम छात्र संघ (आसू) और असम गण संग्राम परिषद आंदोलन शुरू करने और उसके परिणामों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार थे। चुनाव रोकने के मकसद से बड़े पैमाने पर आगजनी, दंगे, सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान, रेल पटरी तोड़फोड़, धमकी, पिकेटिंग और बंद जैसी गतिविधियां संगठित रूप से की गईं। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने के बाद व्यापक हिंसा भड़क उठी, जिसमें भारी जनहानि और संपत्ति को नुकसान हुआ। जनवरी से मार्च के बीच 3526 घटनाएं दर्ज की गईं और 2072 लोगों की मौत हुई, जिनमें 235 की मौत पुलिस फायरिंग में हुई। हिंसा में 545 सड़कें और पुल, 22 रेल सम्पत्तियां, 99 वाहन तथा 15131 घर जलाए गए, जबकि 455 सरकारी भवन क्षतिग्रस्त हुए। घायलों की संख्या 2272 बताई गई।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित