पटना, सितम्बर 27 -- जनसुराज के प्रदेश महासचिव किशोर कुमार ने शनिवार को कहा कि बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वह अवसरवाद और दल-बदल की राजनीति के जीते जागते उदाहरण हैं।
श्री कुमार ने बयान जारी कर कहा कि श्री चौधरी वर्ष 2000 में कांग्रेस से विधायक बने और बाद में उन्ही कांग्रेस के विधायकों के साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को समर्थन देकर मंत्री पद हासिल कर लिया। यह कदम उनके अवसरवाद और राजनीतिक चरित्र को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस से निलंबन के बाद श्री चौधरी का जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल होना उनकी दल-बदल की राजनीति का उदाहरण है।
जन सुराज पार्टी के महासचिव ने बिहार सरकार के मंत्री श्री चौधरी द्वारा श्री किशोर को भेजे गए 100 करोड़ के मानहानि के नोटिस को पूरी तरह से निराधार और राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया। उन्होंने कहा कि अशोक चौधरी ने गलत तरीके से तथ्यों को छिपाने के लिए कानून का सहारा लेने की कोशिश की है ।
श्री किशोर की ओर से उनके वकील देवाशीष गिरी ने श्री चौधरी के नोटिस का जवाब दिया और उदाहरण दे कर कहा कि योगेंद्र दत्त द्वारा साल 2021 में अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी को जिस प्लॉट की बिक्री की गई, उनकी डीड (संख्या-2705) में स्पष्ट लिखा है कि योगेंद्र दत्त को 34.14 लाख रुपये चेक, डिमांड ड्राफ्ट और कैश के माध्यम से दे दिया गया है और अब वो पैसा मांगने के हकदार नहीं हैं। सवाल है कि यह रकम किस चेक और डिमांड ड्राफ्ट से दी गई, इसकी जानकारी भी नहीं दी गयी है। उन्होंने कहा कि इस सौदे के समय शांभवी की उम्र सामान्य जानकारी में 23 साल थी और उनके पास आय का कोई साधन नही था। उन्होंने कहा कि जून 2024 में उनके सांसद बनने के बाद जब अप्रैल 2025 में 25 लाख रुपये योगेंद्र दत्त को दिए गए, उसे भी शांभवी चौधरी की अपनी आय नहीं मानी जा सकती। वजह कि इस अंतराल में सांसद के तौर पर उनकी आय इससे कम थी।
जनसुराज के नेता श्री कुमार ने बताया कि श्री चौधरी को दिए गए जवाब में विस्तार से उन जमीनों और इमारतों का ब्यौरा दिया गया है जो कथित तौर पर उनकी पत्नी, बेटी शांभवी (वर्तमान सांसद) और दामाद के परिवार के नाम पर खरीदी गईं। इन सौदों में भुगतान के तरीकों और घोषित रकम में गंभीर विसंगतियां मिली हैं और कई सौदों की रजिस्ट्री बाजार मूल्य से काफी कम कीमत दिखाकर कराई गई है। स्थानीय लोगों और स्रोतों से प्राप्त जानकारी तथा सार्वजनिक दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि ये सभी संपत्तियां दरअसल श्री चौधरी की ही हैं और इन्हें परिवारजनों व संबंधित न्यास के नाम पर खरीदा गया है।
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