लखनऊ , नवंबर 04 -- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उप्र अवैध धर्मांतरण निरोधक कानून के आरोपों वाले झूठे केस में एक व्यक्ति को जेल भेजने पर सख्त रुख अपनाया है।

हाईकोर्ट ने पुलिस की इस कारवाई पर कड़ी फटकार लगाते हुए उप्र राज्य पर 75 हजार रुपए का हर्जाना लगाया है। इसमें से 50 हजार बंदी को देने का आदेश दिया। शेष 25 हजार कोर्ट की कानूनी सहायता सेवाओं में जमा करने को कहा है। कोर्ट ने मामले की एफआईआर को रद्द करके डेढ़ माह से जेल में बंद व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन और न्यायमूर्ति बबिता रानी की खंडपीठ ने यह आदेश उमेद उर्फ उबैद खा व अन्य लोगों की याचिका पर दिया। याचिका में बहराइच के मटेरा थाने में उनके खिलाफ दर्ज एफ आई आर को रद्द करने समेत याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था।

याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि बहराइच निवासी पंकज कुमार ने 13 सितंबर 2025 को एफ आई आर दर्ज करवाकर कहा कि उसकी पत्नी नकदी और जेवरों के साथ घर से गायब हो गई। आरोप लगाया कि याचियों समेत पांच लोग, उसकी पत्नी को बहला फुसलाकर भगा ले गए हैं। पुलिस ने कथित आरोपियों के खिलाफ अपहरण समेत उप्र अवैध धर्मांतरण निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में उबैद खा को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

इसी बीच वादी की पत्नी वापस आ गई और पुलिस को बयान दिया की वह पारी के दुर्व्यवहार की वजह से खुद मर्जी से भाग गई थी, उसे कोई भागकर नहीं ले गया। कहा कि इसके बावजूद पति के दबाव में अवैध धर्मांतरण निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया गया। अधिवक्ता ने कहा कि पत्नी के इस बयान के बावजूद याची उबैद को रिहा नहीं किया गया।

कोर्ट ने कहा कि वादी की पत्नी के इस बयान, जो पूरी तरह से एफ आई आर को झुठलाने वाला है, के बावजूद पुलिस अफसरों ने उबैद की रिहाई का कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया, और वह डेढ़ माह से जेल में है। इस दयनीय हालत पर कोर्ट को राज्य पर 75 हजार रुपये हर्जाना लगाना पड़ा।

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