नयी दिल्ली , दिसंबर 23 -- भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने कहा है कि उसने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया है जिसमें कहा गया हो कि अरावली पर्वतमाला का केवल नौ प्रतिशत हिस्सा 100 मीटर से ऊपर है।

एफएसआई ने इस संबंध में मीडिया रिपोर्टों को खारिज करते हुए मंगलवार को सोशल मीडिया 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, "एफएसआई मीडिया के कुछ हिस्सों में किये गये दावों का स्पष्ट रूप से खंडन करता है। हमने कोई ऐसा अध्ययन नहीं किया है जिसमें कहा गया है कि अरावली का केवल नौ प्रतिशत हिस्सा 100 मीटर से ऊपर है।"एक अन्य पोस्ट में एफएसआई ने यह भी कहा कि उसने ऐसा कोई अध्ययन भी नहीं किया है जो बताता हो कि 20 नवंबर, 2025 के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अरावली पहाड़ियों का 90 प्रतिशत हिस्सा असुरक्षित छोड़ दिया जाएगा। एफएसआई का यह स्पष्टीकरण पूरे राजस्थान में पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं द्वारा शीर्ष न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के बाद चल रहे विरोध प्रदर्शन के बाद आया है जिसने अरावली पहाड़ी की परिभाषा को संशोधित करते हुए आसपास के इलाके से कम से कम 100 मीटर ऊपर उठने वाले किसी भी भू भाग को संशोधित किया।

इस संबंध में नवंबर में आए फैसले में कहा गया है कि एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर स्थित दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों को, उनके बीच की भूमि के साथ, अरावली पर्वतमाला माना जाता है। पर्यावरणविदों ने तर्क दिया है कि इससे अरावली में खनन की मुफ्त पहुंच खुल जाएगी, जिससे सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला असुरक्षित हो जाएगी।

इस बीच पर्यावरण और वन मंत्रालय ने कहा है कि नये नियम से अरावली पर्वत माला सुरक्षित है और अब इसकी पहले से ज्यादा निगरानी की जा रही है। अवैध खनन रोकने और सिर्फ सतत खनन की अनुमति के निर्देश हैं तथा इस मामले में सभी राज्यों के लिए खनन के समान, वैज्ञानिक और पारदर्शी मानदंड लागू हैं। अरावली क्षेत्र में कानूनी खनन सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र तक सीमित है।

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