वाराणसी , दिसंबर 1 -- शोध और अनुसंधान का लाभ सीधे समाज तक पहुंचाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) निरंतर आगे बढ़ रहा है। इसी कड़ी में विश्वविद्यालय ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। बीएचयू द्वारा विकसित कृषि प्रौद्योगिकी पहली बार उद्योग जगत को हस्तांतरित की गई है।
बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित मूंग की नई उच्च उत्पादकता वाली किस्म एचयूएम-27 (मालवीय जनक्रांति) की बीज उत्पादन एवं विपणन तकनीक का लाइसेंस राजस्थान के श्रीगंगानगर स्थित स्टार एग्रीसीड्स प्राइवेट लिमिटेड को प्रदान किया गया है।
कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नाम अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं, लेकिन विश्वविद्यालय के 108 वर्षों के गौरवशाली इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब कोई कृषि प्रौद्योगिकी उद्योग जगत को हस्तांतरित की गई हो।
सोमवार को विश्वविद्यालय के केंद्रीय कार्यालय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय और स्टार एग्रीसीड्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच इस आशय का समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए। कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी की उपस्थिति में कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह तथा स्टार एग्रीसीड्स के रिसर्च एवं डेवलपमेंट निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए तथा इसका आदान-प्रदान किया।
एमओयू के तहत कृषि विज्ञान संस्थान के आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार सिंह के शोध दल द्वारा अगले पांच वर्षों तक इस किस्म के मूल एवं ब्रीडर बीज की आपूर्ति की जाएगी।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि तकनीक जब समाज तक पहुंचेगी तभी पता चलेगा कि शोध की सही दिशा क्या होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज तक तकनीक पहुंचाने में उद्योग जगत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास जताया कि भविष्य में और अधिक उद्योग साझेदार बीएचयू द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए आगे आयेंगे। पहली बार कृषि क्षेत्र में तकनीक हस्तांतरण होने पर कुलपति ने कृषि विज्ञान संस्थान को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।
स्टार एग्रीसीड्स के डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि बीएचयू लगातार नई-नई बेहतर किस्में विकसित कर रहा है और उनकी कंपनी इन किस्मों को किसानों तक पहुंचाने का कार्य करेगी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उच्च गुणवत्ता वाले बीज किसानों तक पहुंचाकर कृषि विकास और किसान कल्याण के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
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