नयी दिल्ली , नवंबर 17 -- रिलायंस इन्फ्रा पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के कथित उल्लंघन से जुड़े मामले की जांच में घिरे रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के अध्यक्ष अनिल अंबानी दूसरी बार सोमवार को भी प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पेश नहीं हुए और कहा कि वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बयान देने को तैयार हैं।

श्री अंबानी की ओर से सोमवार को मीडिया के लिए जारी एक बयान में उनके एक प्रवक्ता ने कहा कि श्री अंबानी को प्रवर्तन निदेशालय का समन केवल उनके बयान दर्ज करने से संबंधित है और वह किसी भी दिन उपयुक्त समय पर वर्चुअल (वीडियो कांफ्रेंसिंग) अथवा रिकार्ड किये गये वीडियो के माध्यम से जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थिति हो सकते हैं या अपना बयान रिकार्ड करवा सकते हैं।

इससे पहले उन्हें पूछ-ताछ के लिए 14 नवंबर काे पेश होने का समन था, लेकिन, उस पर भी वह नहीं पहुंचे थे।

बयान में कहा गया है, " श्री अंबानी ने अपने बयान की रिकॉर्डिंग के लिए, किसी भी उपयुक्त तिथि और समय पर, वर्चुअल उपस्थिति/ रिकॉर्डेड वीडियो के माध्यम से उपलब्ध होने की पेशकश की है। "बयान में कहा गया है कि श्री अंबानी अप्रैल 2007 से मार्च 2022 तक, लगभग 15 वर्षों, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लि में एक गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्यरत थे। बयान में कहा गया है कि श्री अंबानी की इस दौरान कंपनी के दैनिक परिचालन की जिम्मेदारी नहीं थी।

ईडी की तीन नवंबर 2025 को मीडिया के लिए जारी एक विज्ञप्ति का हवाला देते हुये बयान में यह भी कहा गया है कि ईडी की जांच का मामला जयपुर-रींगस राजमार्ग परियोजना से संबंधित है और यह फेमा के तहत दर्ज है। समूह ने कहा है कि 2010 का यह मामला 15 साल पुराना है और ईडी की विज्ञप्ति के अनुसार यह सड़क परियोजना के एक ठेकेदार से जुड़े मुद्दों से संबंधित है।

बयान में कहा गया है कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को संबंधित सड़क परियोजना के निर्माण का ठेका इंजीनियरिंग, क्रय और निर्माण ( ईपीसी ) के अनुसार दिया गया था। अब चार साल से उस सड़क का परिचालन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) कर रहा है।

समूह का दावा है कि परियोजना का ठेका यह पूरी तरह से घरेलू था और उसमें कोई विदेशी मुद्रा लेन-देन जैसा कोई मामला शामिल नहीं था।

गौरतलब है कि जयपुर-रिंगस राजमार्ग परियोजना में कथित भ्रष्ट्राचार की कमाई को ठिकाने लगाने की जांच के सिलसिले में ईडी ने पिछले दिनों धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत 7500 करोड़ रुपये की सम्पत्तियां कुर्क कर ली थी। एजेंसी कहना है कि इस मामले में आपराधिक तरीके से की गयी कमाई को सूरत की एक खोखा कंपनी के माध्यम से दुबई भेजा गया था। ईडी का कहना है कि धन की हेराफेरी में हवाला के रास्ते का इस्तेमाल हुआ था।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित