दिल्ली, अप्रैल 8 -- दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में कथित अपराध सिंडिकेट के सदस्य को जमानत दे दी और कहा कि त्वरित सुनवाई का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उसे कठोर मकोका मामलों में भी कमजोर नहीं किया जा सकता। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि आरोपी अरुण महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत वर्तमान एफआईआर में आठ साल से अधिक समय से हिरासत में है। अदालत ने कहा कि मुकदमे का निष्कर्ष दूर है और उसकी लगातार कैद दूसरे मामले में चार सप्ताह के लिए पैरोल पर उसकी रिहाई में भी बाधा बन रही है। अदालत ने 7 अप्रैल को कहा,"त्वरित सुनवाई का अधिकार अब भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र में मजबूती से स्थापित है। कोई अमूर्त या भ्रामक सुरक्षा उपाय नहीं है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का ...