नई दिल्ली, नवम्बर 25 -- श्रीमद्भागवत गीता के अठारह अध्यायों के बारे में श्रीविष्णु लक्ष्मी से कहते हैं- 'गीता के पांच अध्याय मेरे मुख हैं, दस अध्याय मेरी भुजा हैं, सोलहवां अध्याय मेरा हृदय, मन और उदर है। सत्रहवां अध्याय मेरी जंघा है। अठारहवां अध्याय मेरे चरण हैं। गीता के श्लोक मेरी नाड़ियां हैं। गीता के अक्षर मेरा रोम-रोम हैं।' गीता के अठारह अध्यायों में पहला अध्याय है- अर्जुन विषाद योग। इसमें उन परिस्थितियों और पात्रों के संबंध में कथन है, जिनकी वजह से कौरवों-पांडवों के बीच महाभारत का संग्राम हो रहा था। इस अध्याय में उन कारणों का वर्णन है, जिसकी वजह से श्रीकृष्ण को गीता का उपदेश देना पड़ा। मोहग्रस्त अर्जुन जब कृष्ण के समक्ष पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण करते हैं, तो अर्जुन को गीता का ज्ञान होता है। सांख्य योग भगवद्गीता का दूसरा अध्याय है। यह अध्...
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