लखनऊ, जून 1 -- सिख दंगों की डराने वाली यादें आज भी उन सिख परिवारों की आंखों में आंसू ला देती हैं, जो सिख दंगों के पीड़ित हैं। एक खूनी जलजला और कत्लेआम कों अपनी आंखों से देखा और आज भी उन आंखों को इंसाफ का इंतजार है। ये सब पंजाबी नाटक 1984 की आग जिस तन लगे सोइ तन जाने के मंचन से देखने को मिला। 84 की त्रासदी को दर्शाते नाटक का मंचन रवीन्द्रालय प्रेक्षागृह में एसएसजीके वेलफेयर फाउण्डेशन की ओर से किया गया जो कलाकारों के साथ ही दर्शकों की आंखों को भी नम कर गया। रजनी सिंह के निर्देशन में मंचित नाटक में सिख दंगों के दर्द को उकेरा गया। नाटक के माध्यम से उस दर्द को ही बयां करने की कोशिश की गई। जिसका इंसाफ उन सरदारों को आज भी नहीं मिला जो अपने परिवार को दंगों में खो देने के बाद आज भी जीवित हैं। नाटक में दिखाया गया कि मासूम बच्चों के हाथ पैर काट के उ...