पाकुड़, अक्टूबर 13 -- पाकुड़। कालीतल्ला में शमशान वासिनी मां काली की पूजा की 300 साल से होती आ रही है। खास बात है कि आधुनिकता के चकाचौंध की दुनिया में भी यहां ताल के पत्तों से घिरे घर व मशाल की रौशनी में पूजा होती है। जानकारी के मुताबिक राजा पृथ्वी चंद्र शाही जब पाकुड़ आये और यहां पर राजबाड़ी की स्थापना की और तब से माता की पूजा राजापाड़ा के कालीतल्ला में होने लगी। लोग कहते हैं मां काली के साथ ही बुढ़ा शिव की भी स्थापना हुई है। माता की प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा श्रद्धालुओं के कांधे पर सवार होकर निकलती है और नगर भ्रमण करती और फिर शहर के कालीभषान पोखर में मां को विदाई दी जाती है। इस शोभायात्रा में हजार की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन को आतुर रहते हैं। स्थानीय लोगों ने कहा यहां मां काली को लोग श्मशान काली व कुछ तो पहाड़िया काली के नाम से...
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