महर्षि रमण, जुलाई 15 -- सूर्य केवल प्रकाश है। वह अंधकार को नहीं देखता। फिर भी हम सूर्य के निकलने पर अंधकार के भाग जाने की बात कहते हैं। वैसे ही भक्त का अज्ञान भी अंधकार के भूतों की तरह गुरु के कृपा-कटाक्ष से क्षण मात्र में पलायन कर जाता है और चारों ओर प्रकाश हो जाता है। तुम्हारे आस-पास सूर्य का प्रकाश है; फिर भी यदि तुम सूर्य को देखना चाहते हो तो तुम्हें उसकी ओर मुड़कर उसके सामने देखना पड़ता है। वैसे ही कृपा भी सर्वत्र व्याप्त है, फिर भी उसे पाने के लिए उचित मार्ग काे अपनाना चाहिए। तुम्हारे मन में यह प्रश्न भी उठ सकता है कि मुमुक्षु को शीघ्र परिपक्वता पाने के लिए गुरु-कृपा उपयोगी होगी या नही? यह सब सोचने की तुम्हें जरूरत नहीं है। यह सब काम तुम गुरु पर छोड़ दो। सबसे पहले तुम संपूर्ण तथा निसंकोच रूप से अपना आत्म-समर्पण गुरु के सामने कर दो ।...
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