नई दिल्ली, मार्च 20 -- पहले बलात्कारी का जुल्म झेला और फिर न्याय के लिए अदालतों के चक्कर लगाए। यह कहानी एक महिला की है, जो साल 1986 में रेप का शिकार हुई थीं, लेकिन न्यायपालिका की तरफ से उन्हें न्याय 2025 में मिल सका। अब शीर्ष अदालत ने आरोपी पुरुष की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और जेल भेजने के आदेश दिए हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के केस संभालने के तरीके पर भी सवालिया निशान लगाए हैं।पूरी कहानी समझते हैं 1986 में नाबालिग रहीं महिला के साथ तब 21 साल के एक लड़के ने बलात्कार किया। नवंबर 1987 में उसे ट्रायल कोर्ट ने दोषी माना और सात साल की जेल की सजा सुना दी। कैसे आगे बढ़ता गया और पीड़िता अलग-अलग अदालतों के चक्कर लगाती रहीं। साल 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया। वजह दी गई कि पीड़िता समेत अभियोजन पक्ष के गवाहों की तर...