पटना, जुलाई 20 -- एक दौर था जब बिहार में कांग्रेस का एकछत्र राज था। आजादी के बाद, 1967 से पहले हुए चुनाव तक उसे किसी दल की ओर से चुनौती नहीं मिली। बाद के दिनों में आपातकाल और जेपी आंदोलन से छात्रों-युवाओं का आक्रोश उसपर भारी पड़ा। पार्टी नेतृत्व बिहार में प्रयोग के तौर पर मुख्यमंत्री बदलते रहा, और कांग्रेस में गुटों की दरार चौड़ी होती गई। रही सही कसर 1990 के दशक में मंडल-कमंडल के दौर में भाजपा और क्षेत्रीय दलों ने पूरी कर दी। अब 2025 में बिहार में खोई हुई जमीन की वापसी के लिए कांग्रेस पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। दलित और पिछड़ों की वकालत करते राहुल गांधी भी चुनावी साल में कई बार बिहार आ चुके हैं। बिहार में सोशल इंजीनियरिंग, जातीय राजनीति और क्षेत्रीय दलों के उभार ने कांग्रेस की बची-खुची जमीन छीन ली। पार्टी अर्श से फर्श पर आ गिरी। तब से...
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