नई दिल्ली, नवम्बर 10 -- सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि डीएनए परीक्षण का आदेश नियमित रूप से नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि ऐसे आदेश कड़े सुरक्षा उपायों के अधीन होने चाहिए ताकि लोगों की गरिमा और विवाह के बाद जन्मे बच्चों की वैधता की रक्षा की जा सके। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विपुल पंचोली की पीठ ने कहा कि ऐसे परीक्षणों का निर्देश देने की शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानी से किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को जबरन डीएनए परीक्षण के लिए बाध्य करना निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन है। ऐसा अतिक्रमण (हस्तक्षेप) तभी उचित ठहराया जा सकता है, जब वह वैधता, राज्य के उचित उद्देश्य और अनुपातिकता, इन तीनों कसौटियों पर खरा उतरे। अदालत ने कहा कि डीएनए परीक्षण का आदेश नियमित रूप से नहीं दिया जा सकता और व्यक्...