वाराणसी, मार्च 12 -- वाराणसी, संवाददाता। अर्दली बाजार स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय में मंगलवार को प्रो. उर्मिला मिश्रा साहित्य संगोष्ठी में 'हिन्दी आलोचना के सौ साल पुस्तक का लोकार्पण और परिचर्चा हुई। मुख्य वक्ता प्रो. ओमप्रकाश ने कहा कि मनुष्य जो कुछ करता है, प्रकृति उसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले से बनाने लगती है। साहित्य भी उससे अछूता नहीं है। डॉ. रामसुधार सिंह ने कहा कि हिन्दी आलोचना की उर्वर भूमि काशी रही है। 1921 में जब बीएचयू में स्नातकोत्तर कक्षाओं का पाठ्यक्रम तैयार हुआ, उस समय श्यामसुंदर दास और रामचंद्र शुक्ल ने कवियों पर केंद्रित समीक्षात्मक लेख लिख आलोचना साहित्य को नई दिशा दी। बाद में हजारी प्रसाद द्विवेदी, शांतिप्रिय द्विवेदी, बच्चन सिंह, चंद्रजीत सिंह ने उसे समृद्ध किया। डॉ. प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि रचना और आलोचना पाठक को उसकी जड...