आरा, जुलाई 16 -- आरा। श्री दिगंबर जैन चंद्रप्रभु मंदिर में चातुर्मास कर रहे जैन मुनि श्री 108 विशल्य सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बोले कि प्रत्येक कर्म का फल अवश्य मिलता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। यह फल वर्तमान जीवन में या भविष्य में भोगना ही पड़ता है। कर्मों के बंधन से ही संसार में जन्म-मरण का चक्र चलता रहता है। जब तक कर्मों का क्षय नहीं होता, तब तक इस बंधन से मुक्ति नहीं मिलती। कर्म के सिद्धांत और उसके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर केंद्रित होता है। कर्मों से मुक्ति का मार्ग है, सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र। इन गुणों को धारण करके व्यक्ति कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है। कर्मों को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और मोहनीय। यदि कोई व्यक्ति दूसरों के सा...