कुशीनगर, मार्च 23 -- कुशीनगर। रमजान उल मुबारक का तीसरा यानी आखिरी अशरा शुरू हो चुका है। इस अशरे में एतिकाफ़ कर गुनाहों से माफी के लिए खुदा की बारगाह में रो-रोकर दुआ करें। रमज़ान का हर पल बड़ा ही नूरानी और काफी कद्र व अहमियत वाला है। इसका आखिरी अशरा बहुत ही ज्यादा खासियत रखता है। इसलिए रमज़ान के आखिरी दस रोज़े हमें एतिकाफ़ में ही बिताने चाहिए। ये बातें गुप्ती शहीद ईदगाह कठकुइयां मोड़ पडरौना के ख़तीबो इमाम हाफ़िज़ मोहम्मद नूर अली ने कही। उन्होंने बताया कि एतिकाफ़ के लफ्ज़ी माने हैं किसी एकांत में ठहर जाना और खुदा की इबादत में दुनिया के तमाम जंजाल व फितना से अपने को अलग करके अपने ख़ालिक़ से इस तरह रिश्ता जोड़ना कि इन दोनों के दरम्यान कोई और न रहे। इसलिए रोज़ेदारों को चाहिए कि अल्लाह की रजा़ में रूक जाएं और सिर्फ़ उसकी इबादत में वक्त गुजारें। रोज़ेदार आखिरी ...
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