बलरामपुर, मार्च 18 -- गैड़ास बुजुर्ग। मौलाना मोहम्मद आलम रज़ा जियाई ने माहे रमजान में होने वाले शब-ए-कद्र की फजीलत और अहमियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि कुरआन-ए-करीम में इस एक रात की इबादत को हजार महीनों की इबादत से बढ़कर बताया है। शबे क़द्र का मतलब होता है सर्वश्रेष्ट रात। लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात। शबे कद्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है। जिसके एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसीलिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस से साबित है। आगामी शुक्रवार को बीसवें रमज़ान के 21वीं शाम को रमज़ान का आखरी अशरा शुरू हो जाएगा। मौलाना मोहम्मद आलम रज़ा जियाई कहते हैं कि हदीस शरीफ में आया है की शबे कद्र रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों जैसे 21, 23, 25, 27 और 29 वीं रात ...
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