नई दिल्ली, अगस्त 30 -- मानव सभ्यता की तरक्की हर पीढ़ी को चौंकाती है। चंद सेकंडों में हजारों मील दूर बैठे किसी अपने से बोल-बतिया सकने वाली नई पीढ़ी कहां एहसास कर पाएगी कि चिट्ठियों के इंतजार का आलम क्या होता है? ठीक ऐसे ही, आने वाली नस्लें बहुत मुश्किल से मानेंगी कि इस देश के लाखों लोग परिवार का पेट भरने के लिए कभी अपने सिर पर दूसरों का मैला ढोया करते थे! विडंबना यह भी कि वे जिनके घरों को स्वच्छ करते थे, वही उन्हें हिकारत की नजरों से देखा करते। ऐसे में, आसिफ शेख के काम को वे जरूर सलाम करेंगी! आज से करीब 42 साल पहले मध्य प्रदेश के देवास में एक दलित मुस्लिम परिवार में जन्मे आसिफ का बचपन तकलीफदेह रहा। उसमें माली तंगी भी थी और सामाजिक हदबंदी भी। आर्थिक अभावों की ओर से तो मन को फिर भी बहलाया जा सकता था, मगर सामाजिक उपेक्षा का दंश रोज-रोज सताता।...
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