रांची, अगस्त 9 -- कुमार गौरव रांची। मिट्टी के दरकते मकान, टूटते छप्पर, घास-फूस से बने घरों को जोड़ती पगडंडियां, खेत में मवेशी चराते चरवाहे, गांव की मिट्टी में खेलते बच्चे, जीर्ण-शीर्ण घरों की दरार से झांकती बेबस गरीबी। यह उस गांव की पहचान है, जो झारखंड-ओडिसा सीमा पर है और यह झारखंड का अंतिम गांव बरकुंडिया है। मंझारी प्रखंड के इसी पिछड़े गांव की गालियों से निकले डॉ हीरेंद्र बिरुवा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह आज कई बड़े मेडिकल डिग्रियों के साथ रिम्स के सुपरिटेंडेंट पद को संभाल रहे हैं। रिम्स सक्सेशन बोर्ड के मुताबिक इस पद पर पहुंचने वाले वे पहले आदिवासी हैं। इतने बड़े संस्थान की व्यवस्था को सुचारू ढंग से संचालित कर लेना बड़ी बात है। पीडियाट्रिक सर्जरी में महारत हासिल आदिवासी समाज से आने वाले डॉ बिरुवा को पीडियाट्रिक सर्जरी में महारत ह...