रांची, मार्च 18 -- रांची, वरीय संवाददाता। डोरंडा के अलाउद्दीन (90 वर्षीय) अंजुमन इस्लामिया के पूर्व सचिव और इस्माइलिया गर्ल्स स्कूल के सचिव रह चुके हैं। अलाउद्दीन कहते हैं कि आज रमजान में सेहरी में उठाने का तरीका बदल चुका है। वह जब 13-14 साल के थे, तब उन्हें याद है कि युवाओं की टोली गली-मुहल्लों में घूमा करती थी। मकसद रोजेदारों को जगाना होता था। किसी के हाथ में डफली होती थी तो किसी के हाथ में ढोलक। हर घर का दरवाजा खटखटाकर आवाज लगाते थे कि उठो भाई उठो, सेहरी का वक्त हो गया है। वक्त बदला तो लोग ट्रेकर व टेंपो पर लाउस्पीकर लगाकर ढ़ाई बजे रात में निकल जाते। हर मुहल्ले में जाते और माइक से यही आवाज लगाते कि उठो रोजेदार सेहरी का वक्त हो गया है। कुछ तो नातशरीफ पढ़कर लोगों को जगाते थे। आज हालत यह है कि हर शख्स के पास मोबाइल है। इसमें अलार्म लगाकर य...