नई दिल्ली, सितम्बर 11 -- सुप्रीम कोर्ट ने एक लड़की से दुष्कर्म और हत्या के लिए दोषी और मौत की सजा पाए कैदी को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि 'जल्दबाजी में सुनाई गई मौत की सजा कानून के शासन को कमजोर करती है। मामले में दुष्कर्म पीड़िता का शव 2014 में मिला था। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए परिस्थितियों की 'पूर्ण और अटूट श्रृंखला साबित करने में विफलता को रेखांकित किया। पीठ ने नवंबर 2014 में उत्तराखंड के काठगोदाम पुलिस थाने में दर्ज मामले में सात साल की जेल की सजा पाए सह-अभियुक्त को भी बरी कर दिया। पीठ ने 10 सितंबर के अपने फैसले में कहा कि निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालयों को भी मौत की सजा देने से पहले अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। पीठ न...