सुपौल, मार्च 20 -- त्रिवेणीगंज। परिवर्तन के इस दौर में कुएं और प्यासे के संबंधों की दूरी समाप्त हो चुकी है। आलम यह है कि कुओं का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है। शहर की बात कौन कहे गांव में भी अब कुएं शायद ही कहीं दिखाई देते हैं। बदलते परिवेश में नए कुआं खुदवाने की बात तो दूर अब पुराने कुएं भी भर दिए गए हैं, जिससे उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। हालांकि सरकारी स्तर पर कुओं का अस्तित्व बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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