मुजफ्फर नगर, जून 17 -- जैन एकता का शंखनाद करने वाले परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक महाकवि संत शिरोमणि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर मुनिराज अपने विशाल चतुर्विध संघ 33 पीछी के साथ पदविहार करते हुए अतिशय क्षेत्र वहलना पहुंचे। सोमवार को अतिशय क्षेत्र वहलना के समीपस्थ सम्पूर्ण जैन समाज ने आचार्य संघ का हर्षोत्साह पूर्वक अतिशय क्षेत्र पर प्रवेश कराया। आचार्य गुरूवर ने सर्वप्रथम क्षेत्र के मूलनायक श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान के संघ सहित दर्शन प्राप्त किये। अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के अभिषेक शांतिधारा के पश्चात् उपस्थित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिनवर जैसा रूप नहीं, साधु समा स्वरूप नहीं। राग-द्वेष निन्दा चुगली, जैसा रूप कुरूप नहीं।। पारस क्षमा की, हो-हो-2 मूर्त कहलाये रे जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाये रे...।। आ...