सीवान, अक्टूबर 30 -- िसीवान। बिहार की राजनीति में बाहुबल का प्रभाव दशकों से चर्चा का विषय रहा है। सत्ता के समीकरणों में ताकतवर चेहरों की भूमिका को आज भी पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। लेकिन, बदलते दौर में जनता, खासकर युवाओं और शिक्षित वर्ग, अब इस परंपरा पर सवाल उठा रहा है। वे मानते हैं कि लोकतंत्र की असली ताकत बाहुबल नहीं, जनता की कलम और वोट है। राजनीति विचार और सेवा की होनी चाहिए, डर और दबाव की नहीं। बाहुबल के बूते सत्ता हासिल करने वालों ने लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर किया है। आज के युवा बुद्धिबल को बाहुबल पर तरजीह देते हैं। उनका कहना है कि राजनीति में अपराध का दखल देश की छवि को नुकसान पहुंचाता है। बाहुबली राजनीति व्यापार और निवेश के माहौल को बिगाड़ती है। जहां डर का राज होगा, वहां विकास ठहर जाएगा। बाहुबल की राजनीति ने महिलाओं की आवाज दबाई ह...