आगरा, अगस्त 23 -- आगरा। ताज नगरी के कलंदर आफत में फंसे हैं। दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही है। कई घरों में मुश्किल से चूल्हे जल रहे हैं। कच्चे टूटे मकानों में बारिश की मार जिंदगी को बेरहम बना रही है। चेहरे से खुशियां गायब हैं। कभी भालू और रीछों से गुलजार रहने वाली कलंदरों की बस्तियां लंबे अरसे से खामोश हैं। बस्तियों में सन्नाटा है। समाज के लिए किसी जमाने में आर्थिक मजबूती का आधार रहे भालुओं का जब्त हो जाना कयामत से कम नहीं रहा। दो दशक पहले भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सख्ती ने समाज के बाजीगरों का भालुओं और रीछों के साथ सौ साल पुराना तालमेल हमेशा के लिए खत्म कर दिया। यहीं से बुरे दिनों का सफर शुरू हो गया। समाज इतने बुरे दौर से गुजर रहा है कि उसे अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। फतेहपुरसीकरी की ग्राम पंचायत कोरई के गां...