अररिया, नवम्बर 5 -- लोकपर्व सामा-चकेवा में छिपी है प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा का संदेश संपूर्ण पर्यावरण बचाने का संदेश देता है लोकपर्व 'सामा-चकेवा' रेणु जी की चर्चित उपन्यास 'परती परिकथा' व कहानी 'विघटन के क्षण' में भी इस लोकपर्व की चर्चा 'सामा-चकेवा' का कई गीत गाकर पद्मश्री शारदा सिंहा भी हो गयी अमर अररिया, वरीय संवाददाता 'सामा-चकेवा' उत्तरी बिहार खासकर मिथिलाचंल का ऐसा लोकपर्व है जो भाई-बहन के अटूट स्नेह व प्यार को दिखाने के साथ-साथ बल्कि पक्षियों पक्षियों की सुरक्षा का भी संदेश देता है। यह लोकपर्व प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है। हालांकि इसकी शुरूआत एक सप्ताह पहले से होती है। सच कहें तो 'सामा-चकेवा' के जरिये मिथिलांचल की महिलाएं पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेती हैं। अररिया के लाल व अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी कृत...