ओशो, मार्च 4 -- 'भक्ति के प्रतिपादन के लिए ब्रह्म विषय के उत्तरकांड से ज्ञानकांड की सामान्यता दिखाई गई है।' शांडिल्य कहते हैं- वेदों में पहले क्रियाकांड है, कर्मवाद है; फिर दूसरे चरण में ब्रह्मज्ञान की बात है, ज्ञानवाद है; और फिर अंतिम चरण में ईश्वर की चर्चा है, भक्ति और भाव की बात है। नुष्य का अस्तित्व तीन तलों में विभाजित है- शरीर, बुद्धि, हृदय। या दूसरी तरह से कहें तो कर्म, विचार और भाव। इन तीनों तलों से स्वयं की यात्रा हो सकती है। स्थूलतम यात्रा होगी कर्मवाद की। इसलिए धर्म के जगत में कर्मकांड स्थूलतम प्रक्रिया है। दूसरा द्वार होगा ज्ञान का, विचार का, चिंतन-मनन। दूसरा द्वार पहले से ज्यादा सूक्ष्म है। दूसरे द्वार का नाम है- ज्ञान योग। तीसरा द्वार सूक्ष्मातिसूक्ष्म है- भाव का, प्रीति का, प्रार्थना का। उस तीसरे द्वार का नाम भक्ति योग है। ...
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