दुमका, जुलाई 10 -- जरमुंडी, प्रतिनिधि।नागों के राजा नाग बाबा बासुकी को फौजदारी दरबार में ही स्वास्थ्य लाभ हुआ था, जब वे समुद्रमंथन के बाद बीमार हो गए थे। तब देवताओं ने उन्हें नागेश ज्योतिर्लिंग की सन्निधि में स्वास्थ्य लाभ के लिए उन्हें यहीं छोड़ गए थे। इस घटना के बाद ज्योतिर्मय भगवान नागेश, सर्पराज बासुकी के स्वामी (मालिक) कहलाए और उन्हें इस प्रकार भोलेनाथ को बासुकीनाथ कहा जाने लगा। समुद्रमंथन में नाग बाबा बासुकी को नेती (रस्सी) और मंदराचल पर्वत को मंथानी बनाकर देवताओं और-दानवों ने मंथन किया था। जिससे चौदह रत्न उत्पन्न हुए थे। इन 14 रत्नों में क्रमशः कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रम्भा, लक्ष्मी जी, वारुणी, चन्द्रमा, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, धन्वंतरि और अमृत शामिल हैं। समुद्र मंथन में हलाहल विष ...