शामली, अक्टूबर 29 -- शामली। शहर के जैन धर्मशाला में मुनि श्री 108 विव्रत सागर ने सत्संग के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सत्संग का अर्थ केवल भजन गाना, ताली बजाना या नृत्य करना नहीं है, बल्कि सत्य का संग है। जिसमें मन और आत्मा पूर्ण रूप से शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो। उन्होंने कहा कि जैसे दूध चीनी की चाशनी को स्वच्छ करता है, वैसे ही सत्संग आत्मा की मलिनता को दूर करता है। सत्संग का आनंद अवर्णनीय है। इसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है। यह क्षणिक सुख नहीं, बल्कि जन्म-जन्मांतर के दुखों को मिटाने का साधन है। मुनिराज ने कहा कि आंखें बंद करके बैठने से मिलने वाली शांति केवल शरीर की थकान मिटा सकती है, आत्मा का आनंद इससे नहीं मिलता। गृहस्थ जीवन में व्यक्ति असत्य और बंधनों से घिरा रहता है। अदालतों में भी जहाँ सत...