बिजनौर, सितम्बर 2 -- स्योहारा। दशलक्षण पर्व के पांचवें दिन दिगंबर जैन मंदिर में प्रवचन करते हुए पंडित हिमांशु जैन ने कहा कि उत्तम सत्य ही धर्म है। इसके अंदर वीतराग भाव पाया जाता है, सत्य धर्म वचनों तक सीमित नहीं है। शुद्ध ज्ञान और आनंद स्वरूप की अनुभूति सच्चे धर्म में ही होती है। सत्य धर्म की उपलब्धि उत्कृष्ट साधना करने वाले महा तपस्वी मुनिराजो को ही प्राप्त हो पाती है। अतः हमें उत्तम सत्य धर्म को वचनों की सत्यता के माध्यम से व्याख्या करते हैं। सत्य धर्म को स्वीकार करना चाहिए और उसे आदर देना चाहिए। परम स्वरूप आत्मा के वास्तविक स्वरूप की अनुभूति करना ही सत्य धर्म है। वर्तमान मनुष्य वस्तु के सत्य स्वरूप को नहीं स्वीकारता। वह भ्रम में जीना पसंद कर रहा है। उत्तम सत्य धर्म समझने की सबसे पहलीं शर्त यह है कि वह हमें स्वीकार हो। उसकी वास्तविकता क...