संत राजिंदर सिंह, नवम्बर 4 -- इंसान का स्वभाव, हिरण जैसा है। इधर-उधर भटकता रहता है। कभी पानी की तलाश में, तो कभी कस्तूरी की सुगंध के पीछे। यह भटकन उसके दुखों का कारण बनती है। नानक साहब ने कहा है- मन के हिरण पर काबू पाकर ही सच्चा रास्ता मिलता है। इसे हम सतगुरु की शरण में जाकर ही पाते हैं।गुरु नानकदेव जी ने कहा है: हरणी होवा बनि बसा कंद मूल चुणि खाउ।। गुर परसादी मेरा सोहु मिलै वारि वारि हउ जाउ जीउ।। हिरण वन में बसता है। वहां उसे जो खाने को मिलता है, वह सब चुन-चुनकर खाता है। उसका ध्यान बाहरी चीजों में लगा रहता है। हिरण के उदाहरण से गुरु नानकदेव जी महाराज हमें समझा रहे हैं कि जब हम शरीर में रहते हैं, तो हमारा ध्यान जहां पर हम रहते हैं, उस दायरे में ही लगा रहता है। हम जहां रहते हैं, हमें वहीं की आदतें पड़ जाती हैं। उसी ओर हमारा ध्यान जाता है, ...
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