शामली, नवम्बर 12 -- शहर के जैन धर्मशाला में श्री विमर्ष सागर मुनिराज ने अपने प्रवचन में कहा कि सेवा ही सच्चा मानव धर्म है, यही जीवन का सार और समाज का आधार है। उन्होंने कहा कि सेवा से रहित जीवन अमानवीय बन जाता है। सच्ची सेवा में कोई भेदभाव नहीं होता, बल्कि यह समानता और मानवता का प्रतीक है। मुनिराज ने कहा कि सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के सुख-दुख में सहभागी बने और बिना किसी भेदभाव के सेवा को अपना कर्तव्य समझे। समाज में वही व्यक्ति यशस्वी और प्रशंसनीय होता है, जिसके भीतर सेवा की भावना होती है। जो व्यक्ति यश, सम्मान और सच्चा सुख पाना चाहता है, उसे सेवा मार्ग अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसमें कोई भेदभाव नहीं होता। जैसे शक्कर सबको समान मिठास देती है, वैसे ही सच्चा सेवक सबके प्रति समान दृष्टि रखता है, चाहे बड़ा ह...